अक्सर बच्चे कोरोना से सुरक्षित क्यों रहते हैं? वैज्ञानिकों ने खोज लिया जवाब

अक्सर बच्चे कोरोना से सुरक्षित क्यों रहते हैं? वैज्ञानिकों ने खोज लिया जवाब

सेहतराग टीम

कोरोना वायरस के बारे में इसके शुरू होने से लेकर अब तक कई तरह की नई जानकारी सामने आई हैं। हर बार इस पर किये गए शोध में नए तथ्य सामने आए। जैसे कि, कोरोना वायरस के कई और नए लक्षण सामने आए, कोरोना वायरस संक्रमण का खतरा किस ब्लड ग्रुप को कम होता है? और कोरोना वायरस किस उम्र के लोगों को ज्यादा प्रभावित करता है? इन सब सवालों के जवाब लगभग मिल गए हैं। लेकिन कुछ सवाल हैं जिनके जवाब अभी खोजे जा रहे हैं। जैसे कि कोरोना वायरस वयस्कों की तुलना में बच्चों को क्यों कम प्रभावित करता है? क्यों ज्यादातर बच्चे कोरोना से बीमार नहीं पड़ते और पड़ते भी हैं तो आमतौर पर रिकवर हो जाते हैं? अब तक इस सवाल का कोई जवाब नहीं मिला था। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने स्टडी कर इस सवाल का जवाब ढूढ़ लिया है। आइए जानते हैं।

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न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, बच्चों में इम्यून सिस्टम का एक ऐसा हिस्सा होता है जो रोगाणुओं को मार देता है। बच्चों को कोरोना से बचाने के लिए भी यही इम्यून सिस्टम काम करता है। साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसीन जर्नल में प्रकाशित स्टडी के मुताबिक, जब तक कोरोना वायरस बच्चे के शरीर को नुकसान पहुंचाना शुरू करे, उससे पहले ही इम्यून सिस्टम का यह खास ब्रांच कोरोना को मार देता है। संक्रामक रोग विशेषज्ञ और स्टडी की प्रमुख लेखिका डॉ. बेत्सी हीरोल्ड कहती हैं- हां, बच्चों का इम्यून सिस्टम कोरोना वायरस को लेकर अलग तरह से बर्ताव करता है और उन्हें सुरक्षा प्रदान करता मालूम पड़ता है। जबकि वयस्कों के इम्यून रेस्पॉन्स में म्यूटेशन हो चुका होता है।

स्टडी के मुताबिक, जैसे ही अपरिचित रोगाणु शरीर के संपर्क में आते हैं, बच्चों के इम्यून सिस्टम का एक हिस्सा कुछ ही घंटों में प्रतिक्रिया देना शुरू कर देता है। इसे 'इनेट इम्यून रेस्पॉन्स' के नाम से जाना जाता है। शरीर को सुरक्षा देने वाला इम्यून सिस्टम तुरंत की वायरस से लड़ता है और बैकअप के लिए भी सिग्नल भेजने लगता है। असल में बच्चों का शरीर अक्सर अपरिचित रोगाणुओं के संपर्क में आता है और ऐसे रोगाणु उनके इम्यून सिस्टम के लिए नए होते हैं। इसलिए उनका इम्यून सिस्टम तेजी से सुरक्षा प्रदान करता है।

रिसर्चर्स ने इम्यून सिस्टम को समझने के लिए 60 वयस्क और 65 बच्चे और 24 साल से कम उम्र के लोगों पर स्टडी की। ये सभी लोग न्यूयॉर्क शहर के एक हॉस्पिटल में भर्ती किए गए थे। इस दौरान पाया गया कि बच्चों के खून में इम्यून मॉलेक्यूल्स interleukin 17A और interferon gamma का स्तर काफी अधिक रहता है। जबकि ये मॉलेक्यूल्स उम्र बढ़ने के साथ लोगों में घटते दिखाई दिए।

इससे पहले कुछ थ्योरी में ये कहा जा रहा था कि कोरोना से बच्चे इसलिए बचते हैं क्योंकि उनमें एंटीबॉडी रेस्पॉन्स सबसे अधिक होता है। लेकिन नई स्टडी में पता चला है कि उम्रदराज और काफी अधिक बीमार व्यक्ति के शरीर में ही सबसे अधिक एंटीबॉडी तैयार होती है न कि बच्चे। नई स्टडी से रिसर्चर्स की चिंता बढ़ भी सकती है कि क्योंकि इससे यह मालूम पड़ता है कि अधिक एंटीबॉडीज कोरोना से अधिक लड़ने के बजाए, अधिक बीमार होने का सबूत हो सकता है।

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के संक्रामक रोग विशेषज्ञ जेन सी बर्न्स कहते हैं कि एंटीबॉडी को लेकर हर कोई खुश हो रहा है, लेकिन क्या ये संभव है कि असल में कुछ एंटीबॉडीज की अधिक मात्रा आपके लिए अच्छा नहीं बल्कि बुरा हो जाए? उन्होंने कहा कि रिसर्चर्स को यह भी पता लगाना होगा कि बच्चों के शरीर में शुरुआती इम्यून रिएक्शन के बाद आगे क्या बदलाव होता है।

 

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